अस्वीकरण व निजता नीति
यह एक
व्यक्तिगत चिट्ठा है। यहाँ व्यक्त विचार या सुझाव व्यक्तिगत हैं और ये सभी
कुमारवाणी व इसके स्वामी के अधीन हैं। यहाँ व्यक्त विचार या सुझाव किसी भी पहचान
को चोट पहुँचाना नहीं चाहते हैं और इसका उद्देश्य भारतीयों व शेष दुनिया का भाषिक नेतृत्व करना है।
हमारी भाषिक विविधताओं ने अब विकराल रूप धारण कर लिया है जहाँ से आगे बढ़ना हमारे लिये ही खतरा पैदा कर रहा है। हम भाषिक तौर पर बँट रहे हैं जो मुझे नागवार गुजर रहा है। मैं हर सुबह इसी आस के साथ उठता हूँ कि आज मुझे ऐसी कोई गफलत ना दिखे लेकिन कमबख्त खुदा किसे हर चीज देता है, सो मुझे भी इसी से संतुष्ट होना पड़ता है।
लेकिन समय बदलते देर नहीं लगती और मेरे मामले में तो यह सौ प्रतिशत ठीक साबित है।
मैं अपने यहाँ ऐसा माहौल बनाने में लगा हूँ जहाँ लोग भाषाओं को दीवार मानने के बजाय उत्सव मनायेंगे और लोग गर्व से कोई भी भाषिक फिल्म देख पायेंगे और वो भी किसी उपशीर्षक/अनुशीर्षक/डबिंग के बिना।
मैं मानता हूँ कि अभियान नामुमकिन है लेकिन असंभव नहीं और मैं उसी संभव को पूरा करने के लिये हूँ। मैंने अबतक 5+ बार भारत सरकार व अन्य संस्थाओं...
रूकिये..., शिकायत करके फायदा नहीं है। शिकायत करने से कुछ भी हासिल होनेवाला नहीं है और यहाँ तो बिल्कुल भी नहीं क्योंकि लोगों ने इसकी आदत बना ली है। लोग समय के साथ जितने समझदार प्रतीत हो रहे हैं, उसी तरह उन्होंने खुद को इस हिसाब से ढाल लिया है कि वे त्रिभाषिक चित्राम (हिंदी-अंग्रेजी-स्थानिक) में बोलचाल के हिसाब से पारंगत हो ही जाते हैं लेकिन असली समस्या संचार या संबंध की नहीं है।
असली समस्या है हमारी भाषाओं में तकनीकी का अभाव। हम जब भी मुँह खोलते हैं, आरंभ में हमारी ही भाषायें रास आती है लेकिन जैसे ही हम प्रौद्योगिकी की ओर मुड़ते हैं, हमारी मुख का रस कड़वा होकर अंग्रेजी की ओर मुड़ जाता है।
ये कदापि सही नहीं है कि किसी एक भाषा को पूरी की पूरी जागीर सौंप दी जा रही है और बाकी सभी मूकदर्शक की भाँति केवल देखने के सिवाय कुछ नहीं कर पा रहे हैं, यद्यपि वे जानते हैं कि ये गलत है लेकिन जब देश के शीर्ष नेतृत्व सहित सभी प्रमुख संस्थायें इसी चलन से खुद का महिमामंडन कर रही हैं, तो देश के आम नागरिक क्या कर सकते हैं।
और भैया, अगर करना ही है तो पूरा एक ही भाषा में करो, क्यों खाली फोकट में दूसरों को मोहरा बनाकर केवल इस्तेमाल किया जा रहा है। यह बहुत कुछ ऐसा ही है जब हम रूमाल उपयोग करते हैं।
और हमारी भाषायें रूमाल तो कदापि नहीं हैं एवं ना कभी हो भी पायेंगी।
ये बदलना चाहिये और बदलाव की बयार ऐसे ही नहीं बहेगी। इसे समर्पण चाहिये और मैं इसका पुरोधा बनने को तैयार हूँ लेकिन इसे एकसौ बत्तीस करोड़ पुरोधाओं की जरूरत है, तभी यह जनांदोलन बनकर जनगणमन का भाव बन पायेगा।
इसके अतिरिक्त मैं शब्दरचना में भी कार्यरत हूँ, ताकि हिंदी व हमारी शेष भाषाओं को शब्दकमी से न गुजरना पड़े। मैं शब्ददोष पर भी कार्यरत हूँ, ताकि शब्दों की दुरूहता हमारी भाषाओं को और कमजोर न कर सके, जैसे- हमारे यहाँ अभी भी दोबारा व दुबारा चलमान हैं और यह त्रुटिपूर्ण है।
इसीलिये यहाँ मानकीकरण की आवश्यकता है जो वैश्विक प्रतिरूप का हिस्सा बनकर फलक पर आयेगा।
कुमारवाणी पर उपलब्ध सामग्रियाँ
पूर्णतः कुमारवाणी व उसके स्वामी कुमार रोहित (व शेष भारतीयों) के अधीन है। यदि आप हमारी सजाल के किसी आलेख का उल्लेख अपने किसी सामग्री में करते हैं, तो इससे पहले हमारी अनुमति आवश्यक है।
यदि आप कुमारवाणी की किसी सामग्री का अवैधानिक प्रयोग करते हुए पाए गए, तो भी कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि कुमारवाणी आपकी मेहनत की कद्र करती है जो आपने हमारे आलेखों को महत्वपूर्ण समझकर अपने सजाल पर जगह दिया।
कुमारवाणी
आपकी निजता का सम्मान करती है।
आपकी निजी सूचनायें, जैसे आपका नाम, पता, संख्या व अनुडाक किसी के साथ किसी भी रूप में साझा नहीं किया जाता है। हम यहाँ व्यापारिक गतिविधियाँ चलाने के लिये नहीं हैं, यद्यपि एक लाभिक संस्था (मानसिक तौर पर) के रूप में जरूर कार्यरत हैं।
बाह्य सजालें
कुमारवाणी किसी बाह्य अंतर्जाल सजालों की सामग्री हेतु उत्तरदायी नहीं है। आप किसी बाह्य सजाल पर अपनी निजी सूचना जाहिर करने से पहले उक्त सजाल की निजता नीति पढ़ लीजिए।
कुमारवाणी अपना अनुक्षेत्र (डोमेन) कब खरीदनेवाली है?
कुमारवाणी ने जनवरी 2017 से अपना सफर शुरु किया है और हमें आशा है कि हम अपनी मंजिल पाने में कामयाब हो पाएँगे।
मैं अभी भी कई बार जाल शिल्पकारी (वेब डिजाइनिंग) के पचड़ों में फँस जा रहा हूँ और उनसे निकलने में मेरा काफी समय चला जाता है। मैं अभी भी कार्यक्रमण सीख रहा हूँ और जल्द ही कुमारवाणी के नए अवतार से आप परिचित होंगे।
लेकिन जो चीज सबसे महत्वपूर्ण है, वह है सामग्री और कुमारवाणी आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास करेगी।
इसके अलावा मुझे आर्थिक सहायता भी चाहिये और मैं इसके लिये प्रयासरत भी हूँ। पैसे तो कोई फोकट में नहीं देगा, जबतक उसका प्रत्यक्ष फायदा न हो, इसीलिये व्यापार प्रतिरूपण पर कार्यरत हूँ, ताकि तंगी से अधिदिन न गुजरना पड़े।
मुझे दो बंदे (दोस्त) चाहिए जो मेरे अन्य विभाग, जैसे- सजाल अनुरक्षण, सामध्यमा विपणन का कार्य देखेंगे और मैं अपनी सामग्री पर संकेंद्रित करूँगा।
कुमारवाणी की आय-व्यय का स्त्रोत
कुमारवाणी फिलहाल ब्लॉगर मंच पर चलमान है, तो इसके लिए अभी तक तकनीकी रूप से खर्च नहीं किया गया है और मानस विभाग ही अभी कार्यरत है।
हाँ, बिजली रसीद आती है लेकिन घरेलु होने के कारण यह अभी शामिल नहीं होती है।
कुमारवाणी का उद्देश्य कमाना नहीं है, यद्यपि भावी समय में हमारे कई उत्पाद प्रस्तुत होनेवाले हैं जो हमारी आय का जरिया बनेंगे लेकिन आप सुनिश्चित रहिए कि आप हमारे सजाल(ों) पर विज्ञापन का नामोनिशान भी ढूँढ नहीं पाएँगे।
हमारी भाषिक विविधताओं ने अब विकराल रूप धारण कर लिया है जहाँ से आगे बढ़ना हमारे लिये ही खतरा पैदा कर रहा है। हम भाषिक तौर पर बँट रहे हैं जो मुझे नागवार गुजर रहा है। मैं हर सुबह इसी आस के साथ उठता हूँ कि आज मुझे ऐसी कोई गफलत ना दिखे लेकिन कमबख्त खुदा किसे हर चीज देता है, सो मुझे भी इसी से संतुष्ट होना पड़ता है।
लेकिन समय बदलते देर नहीं लगती और मेरे मामले में तो यह सौ प्रतिशत ठीक साबित है।
मैं अपने यहाँ ऐसा माहौल बनाने में लगा हूँ जहाँ लोग भाषाओं को दीवार मानने के बजाय उत्सव मनायेंगे और लोग गर्व से कोई भी भाषिक फिल्म देख पायेंगे और वो भी किसी उपशीर्षक/अनुशीर्षक/डबिंग के बिना।
मैं मानता हूँ कि अभियान नामुमकिन है लेकिन असंभव नहीं और मैं उसी संभव को पूरा करने के लिये हूँ। मैंने अबतक 5+ बार भारत सरकार व अन्य संस्थाओं...
रूकिये..., शिकायत करके फायदा नहीं है। शिकायत करने से कुछ भी हासिल होनेवाला नहीं है और यहाँ तो बिल्कुल भी नहीं क्योंकि लोगों ने इसकी आदत बना ली है। लोग समय के साथ जितने समझदार प्रतीत हो रहे हैं, उसी तरह उन्होंने खुद को इस हिसाब से ढाल लिया है कि वे त्रिभाषिक चित्राम (हिंदी-अंग्रेजी-स्थानिक) में बोलचाल के हिसाब से पारंगत हो ही जाते हैं लेकिन असली समस्या संचार या संबंध की नहीं है।
असली समस्या है हमारी भाषाओं में तकनीकी का अभाव। हम जब भी मुँह खोलते हैं, आरंभ में हमारी ही भाषायें रास आती है लेकिन जैसे ही हम प्रौद्योगिकी की ओर मुड़ते हैं, हमारी मुख का रस कड़वा होकर अंग्रेजी की ओर मुड़ जाता है।
ये कदापि सही नहीं है कि किसी एक भाषा को पूरी की पूरी जागीर सौंप दी जा रही है और बाकी सभी मूकदर्शक की भाँति केवल देखने के सिवाय कुछ नहीं कर पा रहे हैं, यद्यपि वे जानते हैं कि ये गलत है लेकिन जब देश के शीर्ष नेतृत्व सहित सभी प्रमुख संस्थायें इसी चलन से खुद का महिमामंडन कर रही हैं, तो देश के आम नागरिक क्या कर सकते हैं।
और भैया, अगर करना ही है तो पूरा एक ही भाषा में करो, क्यों खाली फोकट में दूसरों को मोहरा बनाकर केवल इस्तेमाल किया जा रहा है। यह बहुत कुछ ऐसा ही है जब हम रूमाल उपयोग करते हैं।
और हमारी भाषायें रूमाल तो कदापि नहीं हैं एवं ना कभी हो भी पायेंगी।
ये बदलना चाहिये और बदलाव की बयार ऐसे ही नहीं बहेगी। इसे समर्पण चाहिये और मैं इसका पुरोधा बनने को तैयार हूँ लेकिन इसे एकसौ बत्तीस करोड़ पुरोधाओं की जरूरत है, तभी यह जनांदोलन बनकर जनगणमन का भाव बन पायेगा।
इसके अतिरिक्त मैं शब्दरचना में भी कार्यरत हूँ, ताकि हिंदी व हमारी शेष भाषाओं को शब्दकमी से न गुजरना पड़े। मैं शब्ददोष पर भी कार्यरत हूँ, ताकि शब्दों की दुरूहता हमारी भाषाओं को और कमजोर न कर सके, जैसे- हमारे यहाँ अभी भी दोबारा व दुबारा चलमान हैं और यह त्रुटिपूर्ण है।
इसीलिये यहाँ मानकीकरण की आवश्यकता है जो वैश्विक प्रतिरूप का हिस्सा बनकर फलक पर आयेगा।
कुमारवाणी बारेमा
3 जनवरी, 2017 में कुमार रोहित द्वारा स्थापित कुमारवाणी ने
भाषाओं का एक संगम तैयार किया है। यहाँ फिलहाल हिंदी में सूचनायें उपलब्ध हैं लेकिन इसे जल्द ही बहुभाषिक बनाने की तैयारी चल रही है। यहाँ शुरुआत में लिप्यंतरित आलेख उपलब्ध होंगे जो भाषावार हो सकते हैं।
हमारा लक्ष्य
हम इसे हिंदी सूचना हेतु अग्रणीतम
सजाल बनाना चाहते हैं और इसके साथ ही लोगों को उनके संगणक या मोबाइल आदि उपकरणों
से सीधे सूचना मुहैया कराते हैं।
हमारा लक्ष्य अब सिर्फ हिंदी सूचना हेतु अग्रणीतम ही नहीं, बल्कि सभी भाषाओं में अग्रणीतम होना है और हम यह लक्ष्य हासिल करके रहेंगे। जब हम लोगों को हमारे इसी सजाल से बहुभाषिक सूचनायें (असमिया, ओड़िया, कन्नड़, तमिल, तेलगु, पंजाबी, बंगला, मलयालम, हिंदी, बोड़ो, आदि) एक ही अफलक से उपलब्ध करायेंगे जो मनोरंजन से लेकर निजी विचार व्यक्त करने तथा तकनीकी से लेकर शिक्षा में हमारी भाषाओं के योगदान पर सक्रिय चर्चा को बहुलता दी जायेगी, तो लोग स्वतः हमारे सजाल से जुड़ते जायेंगे।
इसके अलावा हम संवैधानिक रूप से हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा बनाने की ओर अग्रसर भी हैं लेकिन शब्दप्रवाह संतुलित न होने के कारण यह अभी भी दुरूह है लेकिन इस समस्या से भी निपट लिया जायेगा। लोगों को इस अभियान से जुड़ने के लिये तैयार रहना पड़ेगा क्योंकि उनके योगदान के बिना यह फलित नहीं होगा।
मैं अभी इसे व्यापार प्रतिरूप की शक्ल देने में लगा हूँ क्योंकि आज के वैश्वीकरण के दौर में भैया, चलती उसी की है, जिसके पास पैसे हैं और अभी मेरे पास पैसे नहीं है लेकिन कल ऐसा नहीं होगा।
मैं इसे बदलने का आगाज कर चुका हूँ, तो अंजाम तक पहुँचाना भी मेरी ही जिम्मेदारी है।
हमारा लक्ष्य अब सिर्फ हिंदी सूचना हेतु अग्रणीतम ही नहीं, बल्कि सभी भाषाओं में अग्रणीतम होना है और हम यह लक्ष्य हासिल करके रहेंगे। जब हम लोगों को हमारे इसी सजाल से बहुभाषिक सूचनायें (असमिया, ओड़िया, कन्नड़, तमिल, तेलगु, पंजाबी, बंगला, मलयालम, हिंदी, बोड़ो, आदि) एक ही अफलक से उपलब्ध करायेंगे जो मनोरंजन से लेकर निजी विचार व्यक्त करने तथा तकनीकी से लेकर शिक्षा में हमारी भाषाओं के योगदान पर सक्रिय चर्चा को बहुलता दी जायेगी, तो लोग स्वतः हमारे सजाल से जुड़ते जायेंगे।
इसके अलावा हम संवैधानिक रूप से हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा बनाने की ओर अग्रसर भी हैं लेकिन शब्दप्रवाह संतुलित न होने के कारण यह अभी भी दुरूह है लेकिन इस समस्या से भी निपट लिया जायेगा। लोगों को इस अभियान से जुड़ने के लिये तैयार रहना पड़ेगा क्योंकि उनके योगदान के बिना यह फलित नहीं होगा।
मैं अभी इसे व्यापार प्रतिरूप की शक्ल देने में लगा हूँ क्योंकि आज के वैश्वीकरण के दौर में भैया, चलती उसी की है, जिसके पास पैसे हैं और अभी मेरे पास पैसे नहीं है लेकिन कल ऐसा नहीं होगा।
मैं इसे बदलने का आगाज कर चुका हूँ, तो अंजाम तक पहुँचाना भी मेरी ही जिम्मेदारी है।
सजाल ध्येय
1. पाठकों को भारती (अखिल भारतीय भाषायें) में पूर्ण तकनीकी
व शिक्षाप्रद सामग्रियाँ मुहैया कराना।
2. सजाल का समग्र विकास जारी रखना।
3. सामग्री रचना हेतु बेहतर प्रणाली
विकसित करना।
हम हर किसी के धैर्य की सराहना करते
हैं और इस दौरान हम अंतर्जाल पर सर्वोत्तम जनसेवा देने के लिए कार्यरत हैं।
कुमारवाणी पर पृष्ठ किसने लिखा?
कुमारवाणी के सभी पृष्ठों को वर्तमान
में कुमार रोहित द्वारा लिखा व अद्यतित किया जाता है। अगर आपको किसी पृष्ठ या
विवरण हेतु प्रणेता सूचना चाहिए, तो आप प्रणेता रूप में कुमारवाणी या भारती दिखा सकते हैं।
कुमारवाणी पर उपलब्ध सामग्रियाँ
पूर्णतः कुमारवाणी व उसके स्वामी कुमार रोहित (व शेष भारतीयों) के अधीन है। यदि आप हमारी सजाल के किसी आलेख का उल्लेख अपने किसी सामग्री में करते हैं, तो इससे पहले हमारी अनुमति आवश्यक है।
यदि आप कुमारवाणी की किसी सामग्री का अवैधानिक प्रयोग करते हुए पाए गए, तो भी कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि कुमारवाणी आपकी मेहनत की कद्र करती है जो आपने हमारे आलेखों को महत्वपूर्ण समझकर अपने सजाल पर जगह दिया।
आपकी निजी सूचनायें, जैसे आपका नाम, पता, संख्या व अनुडाक किसी के साथ किसी भी रूप में साझा नहीं किया जाता है। हम यहाँ व्यापारिक गतिविधियाँ चलाने के लिये नहीं हैं, यद्यपि एक लाभिक संस्था (मानसिक तौर पर) के रूप में जरूर कार्यरत हैं।
बाह्य सजालें
कुमारवाणी किसी बाह्य अंतर्जाल सजालों की सामग्री हेतु उत्तरदायी नहीं है। आप किसी बाह्य सजाल पर अपनी निजी सूचना जाहिर करने से पहले उक्त सजाल की निजता नीति पढ़ लीजिए।
कुमारवाणी अपना अनुक्षेत्र (डोमेन) कब खरीदनेवाली है?
कुमारवाणी ने जनवरी 2017 से अपना सफर शुरु किया है और हमें आशा है कि हम अपनी मंजिल पाने में कामयाब हो पाएँगे।
मैं अभी भी कई बार जाल शिल्पकारी (वेब डिजाइनिंग) के पचड़ों में फँस जा रहा हूँ और उनसे निकलने में मेरा काफी समय चला जाता है। मैं अभी भी कार्यक्रमण सीख रहा हूँ और जल्द ही कुमारवाणी के नए अवतार से आप परिचित होंगे।
लेकिन जो चीज सबसे महत्वपूर्ण है, वह है सामग्री और कुमारवाणी आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास करेगी।
इसके अलावा मुझे आर्थिक सहायता भी चाहिये और मैं इसके लिये प्रयासरत भी हूँ। पैसे तो कोई फोकट में नहीं देगा, जबतक उसका प्रत्यक्ष फायदा न हो, इसीलिये व्यापार प्रतिरूपण पर कार्यरत हूँ, ताकि तंगी से अधिदिन न गुजरना पड़े।
मुझे दो बंदे (दोस्त) चाहिए जो मेरे अन्य विभाग, जैसे- सजाल अनुरक्षण, सामध्यमा विपणन का कार्य देखेंगे और मैं अपनी सामग्री पर संकेंद्रित करूँगा।
कुमारवाणी की आय-व्यय का स्त्रोत
कुमारवाणी फिलहाल ब्लॉगर मंच पर चलमान है, तो इसके लिए अभी तक तकनीकी रूप से खर्च नहीं किया गया है और मानस विभाग ही अभी कार्यरत है।
हाँ, बिजली रसीद आती है लेकिन घरेलु होने के कारण यह अभी शामिल नहीं होती है।
कुमारवाणी का उद्देश्य कमाना नहीं है, यद्यपि भावी समय में हमारे कई उत्पाद प्रस्तुत होनेवाले हैं जो हमारी आय का जरिया बनेंगे लेकिन आप सुनिश्चित रहिए कि आप हमारे सजाल(ों) पर विज्ञापन का नामोनिशान भी ढूँढ नहीं पाएँगे।
इतिहास
------------------------------------------------------
------------------------------------------------------
जनवरी 2017- रंग बदला गया।
फरवरी-मार्च 2017- अभिविन्यास बदला गया।
09 मई 2017- पृष्ठ: अस्वीकरण व निजता नीति, बारेमा, संपर्क करें अद्यतित। सजाल अनुरक्षण भी।
09 मई 2017- पृष्ठ: अस्वीकरण व निजता नीति, बारेमा, संपर्क करें अद्यतित। सजाल अनुरक्षण भी।
...
यह पृष्ठ अंतिम बार 09 मई 2017 (0406 भामास) को अद्यतित हुयी थी।